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भिण्ड/ग्वालियर - "सिलसिला" कार्यक्रम के तहत साहित्यिक गोष्ठी संपन्न


भिंड/ग्वालियर - ( हसरत अली ) - देश की आजादी के 75वें वर्ष पर अमृत महोत्सव के अंतर्गत मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी एवं संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के जानिब से प्रदेश में संभागीय मुख्यालयों पर नवोदित रचनाकारों पर आधारित "तलाशे जौहर" कार्यक्रम के तहत सम्पन्न होने के उपरांत अब ज़िला मुख्यालयों पर वरिष्ठ रचनाकारों के लिए "सिलसिला" कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इसी फेरिस्त में पंद्रहवां प्रोग्राम ग्वालियर स्थित होटल एम्बेसडर, जयेंद्र गंज, में 18 सितंबर  दोपहर बाद "शेरी व अदबी नशिस्त" का आयोजन ज़िला कोड़िनेटर डॉ मुक्ता सिकरवार के संयोजन में किया गया। जिसमें तमाम अदीबों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.

अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने बताया उर्दू अकादमी द्वारा अपने ज़िला समन्वयकों के माध्यम से प्रदेश के सभी ज़िलों में आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत "सिलसिला" के अन्तर्गत व्याख्यान, विमर्श व काव्य गोष्ठियों का आयोजन

ज़िला मुख्यालयों पर किया जा रहा हैं। जिसमें सम्बंधित ज़िलों के अन्तर्गत आने वाले गाँवों, तहसीलों, बस्तियों इत्यादि के ऐसे रचनाकारों को आमंत्रित किया गया है जिन्हें अभी तक अकादमी के कार्यक्रमों में प्रस्तुति का अवसर नहीं मिला है.  इसी सिलसिले में भोपाल, खण्डवा, विदिशा, धार, शाजापुर  टीकमगढ़, सागर एवं सतना, रीवा, सतना सीधी, रायसेन, सिवनी, नरसिंहपुर नर्मदापुरम दमोह एवं शिवपुरी में कार्यक्रम आयोजित हो चुके हैं. आज इस प्रोग्राम में ग्वालियर ज़िले के दो दर्जन के करीब रचनाकारों ने ग्वालियर के वरिष्ठ शायर विजय कलीम की अध्यक्षता एवं भिंड के वारिष्ठ शायर महावीर तन्हा के मुख्य अतिथि में अपनी रचनाएं प्रस्तुत प्रस्तुत कीं। अपना कलाम पेश करते हुए विजय कलीम ने कहा 

"मोहब्बतों की सरहदें हैं ज़िंदगी की सरहदें,

और इसके बाद जो भी है कयास ही कयास है"


वहीं महावीर तनहा ने ग़ज़ल में कहा,,,, 

"गर्मी में भी छत का पंखा बंद रखा,

कमरे में चिड़ियों का आना जाना है।"


उमर भोपाली बोले,,,, 

"वफ़ा की राह में अब कोई हमसफ़र भी नहीं,

चलो ये ठीक रहा रहजनों का डर भी नहीं।"

कादंबरी आर्य ने पेश किया,,,,,

"खरीदा है कभी सोना कभी बेचे हैं मोती भी,

दिलों की और फूलों की तिजारत हम नहीं करते।"

इस के लावा 


"एक ही दर है जहां से सबको मिलती है मुराद,

हर किसी चौखट पे अपना सर झुकाना छोड़ दें।"

सुनीति बैस


तुम्हें सुनाने में गर मुश्किल न हो तो

हमें कहने में आसानी रहेगी

रचना मिश्रा


बड़ा शातिर परिंदा है हवा को काट देता है,

मैं जब आवाज देता हूं सदा को काट देता है।

शेख मुईन


दिलो चाह होती है कभी खंजर नहीं होते,

हमारे गांव में ये बदनुमा मंज़र नहीं होते।

अल्ताफ हुसैन


मां को दिल से भुला न पाओगे,

कर्ज मां का चुका न पाओगे।

राम लाल साहू बेकस


नफ़रत का ज़हर खून में पैदा न कीजिए,

अपनी ही जिंदगी से ये सौदा न कीजिए।

अकरम दतियावी


गिरते गिरते संभाल देता है ,

मेरे कदमों को चाल देता है,

ज़ीस्त ऐसे बसर हुईं मुक्ता,

ये जमाना मिसाल देता है।

डॉ मुक्ता सिकरवार


इश्क जबसे अपना रहबर हो गया,

औज पर अपना मुकद्दर हो गया।

डॉ संजय मिर्ज़ा


उनका था इंतज़ार मग़र वो नहीं आये,

करना था प्यार मग़र  वो नहीं आये।

धर्म पाल मधुकर


तुमको कहता है हमेशा ही खुदा एहसास का,

हो गया है दिल हमारा आइना एहसास का।

हेमंत त्रिवेदी अमन


वो रो रहा है जिसपे न आंखें हैं न ही दिल,

मेरे सुखन में दर्द की मंज़रकशी तो देख।

गगन मुद्गगल


उदासी के समंदर में खुशी को ढूंढ लेता है,

जो जीना चाहता है जिंदगी को ढूंढ लेता है।

रविन्द्र रवि


जीवन जैसे सरल सहज दरवेश लिखो दो मिसरे,

गये जमाने  की बातें हैं लफ़्ज़ों की अय्यारी।

दरवेश ग्वालियरी


हो ना तकदीर पे मगरुर खुदा का हो जा,

कब पलट जाएं सितारों का भरोसा क्या है

विजय सेठी अकेला


हमसे जो बन पड़ा किया हमने

और हम इससे ज्यादा क्या करते।

सचिन मैथिल,इनके अलावा क़मरुज़ ज़मां सिद्दीकी ने शायरी के साथ लघु आलेख भी प्रस्तुत किया। शेरी नशिस्त का संचालन डॉ. मुक्ता सिकरवार ने किया। अंत में कार्यक्रम में डॉ. मुक्ता सिकरवार ने उपस्थित सभी लोगो का आभार व्यक्त किया।

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